पहला कदम
सोच कर किसी कस्बे को, कल जो न बदल सका, उस कल को कल बदलने भेजा हे, रोक न सके कल कोई तुमको, इसी लिए आज संभल ने भेजा हे...
पहला कदम
सोच कर किसी कस्बे को,
कल जो न बदल सका,
उस कल को कल बदलने भेजा हे,
रोक न सके कल कोई तुमको,
इसी लिए आज संभल ने भेजा हे...
कुछ सिख लो, कुछ समझ लो...
न समझे तो, वापस लो,
हर शक्श ऐसे ही बढ़ता हे,
आज और हे, कल तुम हो...
गिरते संभल ते तुम खुद को,
उलझाओ न बस्ती में,
खुद के पैरो पे खड़े हो के,
सुलझालो अपनी हस्ती को...
तुम आग में उबलते लोहा हो,
ढांचा खुद का बनाने निकले हो,
खुद को ऐसा सीचो तुम,
पहला कदम तो लेलो तुम,
पहला कदम तो लेलो तुम....
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